INSIDE ME

हर आदमी के अंदर,
एक और आदमी रहता है ...

यात्रा तो शुरू करो, रास्ते मिल ही जायेंगें -- आर.पी.यादव

तुम्हारा हर एक दिन, एक जीवन के समतुल्य है -- आर.पी.यादव

सूर्यास्त होने तक मत रुको, चीजें तुम्हे त्यागने लगे, उससे पहले तुम्ही उन्हें त्याग दो -- रामधारी सिंह दिनकर

हर परिस्थिति में एक खुबसूरत स्थिति छुपी होती है --आर पी यादव

व्यक्ति जब रिटायर होता है

 "वो व्यक्ति जो रिटायर होता है" एक भावनात्मक हिंदी कविता है, जो रिटायरमेंट के बाद व्यक्ति के मन में उठने वाले विचारों, समाज की प्रतिक्रियाओं और जीवन के नए अध्याय की शुरुआत को मार्मिकता से प्रस्तुत करती है।

जब व्यक्ति रिटायर होता है...

जिदगी का लेखा-जोखा
स्रोत सेवा निवृति के बाद व्यक्ति क्या  सोचता होगा  ?  उपेक्षा और आशा की दो संभावित  भावनाओं का चित्रण.
पहला पहलू …निराशा 

वो व्यक्ति
जो रिटायर होता है,
उम्र या जीवन से नहीं,
समाज से घायल होता है।
उस समाज से, जो
हमदर्द का नहीं,
खुदगर्ज़ का कायल होता है…

क्या सोचता है वह व्यक्ति,
जो रिटायर होता है?
शायद,

बचे हुए जीवन का हिसाब,
गुज़रे हुए ज़िंदगी की यादें,
परिवार की जिम्मेदारियाँ,
जो कर न पाया उसका पश्चाताप,
या आगे क्या करना है इसका जवाब।
जी हाँ, यही तो सोचता होगा
वह व्यक्ति, जो नौकरी से रिटायर होता है…

इन सबके बावजूद एक डर,
समाज की उपेक्षाओं का,
अपने खून के बदलते रंगों का,
नकली औपचारिकताओं का,
ढकोसले रिश्तों का और,
ज़िंदगी के सूर्यास्त का।
शायद यही सोचता होगा,
वो शख्स, जो रिटायर होता है…


दूसरा पहलू …आशा 

लेकिन,
सच्चाई तो दूर खड़ी है,
ज़िंदगी तो अभी बरसों पड़ी है।
सेवा निवृत्ति छोर नहीं, एक मोड़ है,
जहाँ से ज़िंदगी छूटती नहीं, मुड़ती है।
और आगे चलकर
एक नई कहानी जुड़ती है।
अनुभवों का ख़ज़ाना है,
बंधनों से मुक्ति है।
फिर किन बातों का डर,
और कैसी सुस्ती है?
कौन जानता है ज़िंदगी की डोर
कितनी लंबी है?
कौन कहता है
रिटायरमेंट एक रोग है?
सच तो यह है –
यह ज़िंदगी का घटाव नहीं,
कर्मों का योग है…

 
         ★★★

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