नज़रिया ...

शायद,
आकलन की कमी थी,
वहां बिखरा था बहुत कुछ
पर दिख न सका,
यह नजरों का नही
नज़रिया का दोष था
किसी दोस्त ने कहा
कुछ चीजें नजरों से नही
नज़रिया से देखा करो,
मैंने फिर देखा,
दिन का कोना
जो कल रात तक कोरा था,
आज सुबह,
वह न कोरा था न अधूरा था …
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