INSIDE ME

हर आदमी के अंदर,
एक और आदमी रहता है ...

यात्रा तो शुरू करो, रास्ते मिल ही जायेंगें -- आर.पी.यादव

तुम्हारा हर एक दिन, एक जीवन के समतुल्य है -- आर.पी.यादव

सूर्यास्त होने तक मत रुको, चीजें तुम्हे त्यागने लगे, उससे पहले तुम्ही उन्हें त्याग दो -- रामधारी सिंह दिनकर

हर परिस्थिति में एक खुबसूरत स्थिति छुपी होती है --आर पी यादव

हम जश्न मनाते हैं

“हम जश्न मनाते हैं” एक मार्मिक हिंदी कविता है जो आधुनिक सामाजिक जीवन की खोखली औपचारिकताओं और भावनात्मक बिछड़नों को उजागर करती है। यह रचना दिखाती है कि कैसे हम हर विदाई को “जश्न” के आवरण में छुपा लेते हैं। यदि आप बिछड़ने पर कविता, भावुक हिंदी कविता, या समाज पर व्यंग्यात्मक कविता खोज रहे हैं, तो यह कविता आपके दिल को छू जाएगी।

हम जश्न मनाते हैं ...

विदाई पर भावनात्मक हिंदी कविता – हम जश्न मनाते हैं
सन्दर्भ :  सहयोगी कर्मचारी के सेवा  निवृति विदाई समारोह  के दौरान मन में उत्पन्न उस समय का एक दृश्य.

अपनो से बिछड़ने की
अब आदत बन गयी है,
बिछड़ चुके है कितनों से
अब गिनती भी नहीं है …

हर बार निकल जाता है कोई
कभी इस घर से कभी उस घर से,
हर दफा ये ऑंखें नम होतीं
कभी हँस कर के, कभी रो कर के
आज फिर किसी से बिछड़ेगे
वो घड़ी आ गयी है
अपनो से बिछड़ने की
अब आदत बन गयी है …

कल फिर कोई आएगा यहाँ
हम सबको बहलाने के लिए
एक शाम हमारे नाम भी है
चीफ गेस्ट कहलाने के लिए
इन सदमों को सहने की
अब ताकत आ गयी है,
अपनो से बिछड़ने की
अब आदत बन गयी है…

हम जश्न मनाते है,
अब हरबार इस महफ़िल सजाकर,
सिसकियों को साज बना कर
यादों को संगीत बना कर,
दर्दों को एक गीत बना कर,
अंशुओं से प्यास बुझाकर कर,
हम खुश है,
अपने घर को जला कर
अगला कौन आएगा यहाँ
एक आहट मिल गयी है,
अपनो से बिछड़ने की
अब आदत बन गयी है…

जाते हुए लोंगो की
कतार लग गयी है
आ जाओ तुम भी,
अब शाम ढल गयी है
अपनो से बिछड़ने की
अब आदत बन गयी है…

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