हम जश्न मनाते हैं ...

सन्दर्भ : सहयोगी कर्मचारी के सेवा निवृति विदाई समारोह के दौरान मन में उत्पन्न उस समय का एक दृश्य.
अपनो से बिछड़ने की
अब आदत बन गयी है,
बिछड़ चुके है कितनों से
अब गिनती भी नहीं है …
हर बार निकल जाता है कोई
कभी इस घर से कभी उस घर से,
हर दफा ये ऑंखें नम होतीं
कभी हँस कर के, कभी रो कर के
आज फिर किसी से बिछड़ेगे
वो घड़ी आ गयी है
अपनो से बिछड़ने की
अब आदत बन गयी है …
कल फिर कोई आएगा यहाँ
हम सबको बहलाने के लिए
एक शाम हमारे नाम भी है
चीफ गेस्ट कहलाने के लिए
इन सदमों को सहने की
अब ताकत आ गयी है,
अपनो से बिछड़ने की
अब आदत बन गयी है…
हम जश्न मनाते है,
अब हरबार इस महफ़िल सजाकर,
सिसकियों को साज बना कर
यादों को संगीत बना कर,
दर्दों को एक गीत बना कर,
अंशुओं से प्यास बुझाकर कर,
हम खुश है,
अपने घर को जला कर
अगला कौन आएगा यहाँ
एक आहट मिल गयी है,
अपनो से बिछड़ने की
अब आदत बन गयी है…
जाते हुए लोंगो की
कतार लग गयी है
आ जाओ तुम भी,
अब शाम ढल गयी है
अपनो से बिछड़ने की
अब आदत बन गयी है…