INSIDE ME

हर आदमी के अंदर,
एक और आदमी रहता है ...

यात्रा तो शुरू करो, रास्ते मिल ही जायेंगें -- आर.पी.यादव

तुम्हारा हर एक दिन, एक जीवन के समतुल्य है -- आर.पी.यादव

सूर्यास्त होने तक मत रुको, चीजें तुम्हे त्यागने लगे, उससे पहले तुम्ही उन्हें त्याग दो -- रामधारी सिंह दिनकर

हर परिस्थिति में एक खुबसूरत स्थिति छुपी होती है --आर पी यादव

वह कौन है ?

यह कविता समय के प्रवाह और आत्म-परिचय की खोज को बेहद संवेदनशील ढंग से प्रस्तुत करती है। बीते वर्षों की एक तस्वीर, आज की आत्मा से सवाल करती है — "तुम कौन हो?"। यह कविता अतीत और वर्तमान के बीच संवाद, उलझन और आत्ममंथन का गहन चित्रण करती है। पहचान की तलाश में हम कैसे खुद से ही दूर हो जाते हैं, यही इसकी मूल भावना है।

वह कौन है ?

वह कौन है

 

स्रोत :  एक जीवन, जवानी से बुढ़ापे की ओर कब अग्रसर हो  जाता है, पता ही नही चलता.  जन्मदिन के अवसर पर एक  प्रौढ़ महिला की अपनी टीनएजर तस्वीर से संवाद के कुछ अंश… 

दिन, महीने और वर्षों ने
मुझे अरसों से उलझाए रखा.
इतनी जल्दी,
उस मोड़ से इस मोड़ तक
आ जाऊंगी मैं,
सफ़र के इस राज को
वक़्त ने छुपाए रखा…

मेरे अलबम के परतों में
वर्षों पहले रखी एक तस्वीर
आज भी ख़ूबसूरत है,
दिलकश और जवां है.
आज, वह पूछती है मुझसे,
तुम कौन हो?

उसके इशारों की हर भाषा,
मुझे तरसाती है, तड़पाती है.
मैं आगे जाती हूँ,
वो पीछे ले आती है.
उसे पकड़ने की हर कोशिशें
नाकाम हो जाती हैं.
मैं उसके सवालों से
नाराज़ नहीं, निरुत्तर हूँ.
हम दोनों एक ही बिंदु थे कभी,
आज वह दक्षिण है, मैं उत्तर हूँ…

आजकल हमारे बीच
संवादों का सिलसिला है.
मैं मुश्किल से जीतती हूँ,
आसानी से हारती हूँ.
उसके परिहास से दिल अब बैचैन है.
हालाँकि वह तस्वीर
स्थिर, ख़ामोश और मौन है.
मेरे दोस्तों,
पहचानो तो सही,
वह कौन है…

                  ***

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