कोई अभिनय तो नही …

जीवन क्रम का एक बूँद,
अभी दूर था समंदर से.
उसे पहुँचना था वहाँ वर्षों बाद,
पहचाने हुए रास्तों से.
वह चला गया अचानक,
इस रंगमंच को छोड़कर,
हवा के रास्ते,
किसी परिंदे के वाहन से…
उम्र अभी जाने की न थी,
अदाकारी की कोई इन्तहां न थी.
किन रास्तों से गुज़रेगा उसका कारवाँ,
इस रहस्य का पता
समंदर को भी न था.
वह छुप गया किसी बूँद में,
कुछ दे गया, कुछ ले गया.
छुप जाना तो मंज़ूर था,
इस तरह से चले जाना,
कोई अभिनय तो नहीं?
जीवन के दो क्रम हैं —
एक वास्तविक, दूसरा भ्रम है.
एक सुरक्षित, दूसरा असुरक्षित है.
एक निश्चित, दूसरा अनिश्चित है.
एक ज्ञात, दूसरा अज्ञात है.
एक मेरे पास है,
दूसरा किसी और के पास है.
कल तक जो सामने था,
आज, वह इतिहास है…
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