INSIDE ME

हर आदमी के अंदर,
एक और आदमी रहता है ...

यात्रा तो शुरू करो, रास्ते मिल ही जायेंगें -- आर.पी.यादव

तुम्हारा हर एक दिन, एक जीवन के समतुल्य है -- आर.पी.यादव

सूर्यास्त होने तक मत रुको, चीजें तुम्हे त्यागने लगे, उससे पहले तुम्ही उन्हें त्याग दो -- रामधारी सिंह दिनकर

हर परिस्थिति में एक खुबसूरत स्थिति छुपी होती है --आर पी यादव

तुम्हारी नाराज़गी मेरी ज़रूरत है

यह नफ़रत नही, एक सूरत है,
तुम्हारी नाराजगी मेरी जरूरत है...
यह कविता रिश्तों की उस अनकही सुंदरता को बयां करती है, जहाँ नाराज़गी भी ज़रूरत बन जाती है। यह दर्शाती है कि कभी-कभी रूठना, शिकायत करना और खफ़ा होना भी रिश्ते को गहराई देता है। यह सिर्फ दर्द नहीं, बल्कि भावनाओं को समझने और संजोने का एक अवसर होता है।

तुम्हारी नाराज़गी
मेरी ज़रूरत है

tumhari narazgi meri zarurat hai

तुम्हारी नाराज़गी मेरी ज़रूरत है
यह मेरे विषय को जन्म देती है.
कलम को एक गति,
भाव ज़्यादा अर्थपूर्ण होने लगते हैं.
एक ख़ास मंच पर
हम आमने-सामने होते हैं.
गले में अटकी हुई कुछ बातें,
आंखों में छुपी हुई तस्वीरें,
एक झटके से बाहर आ जाती हैं.
मन हल्का हो जाता है.
फिर अच्छा लगता है,
रिश्तों का यह रंग भी खूबसूरत है.
तुम्हारी नाराज़गी मेरी ज़रूरत है…

तुम्हारा रूठना,
मुझे कमज़ोर नहीं करता.
रिश्तों की गांठ कहाँ ढीली हो रही है,
टूटने से पहले चिन्हित हो जाती है.
एक तूफ़ान टकराने से पहले
कमज़ोर पड़ जाता है.
और उसके बाद,
मौसम ख़ुशनुमा हो जाता है…

तुम्हारा ख़फ़ा होना,
एक जोखिम है, कुछ खोने का.
मगर, मौक़ा भी है इसे संजोने का.
मुझे जीतना आता है इसे,
इसका अंदाज़ा तुम्हें भी है.
तभी तो,
तुम अक्सर नाराज़ होती रहती हो.
जो ग़लतियाँ हैं,
उसे सुधारने का मोहलत देती रहती हो.
मैं तुम्हारा आशय जानता हूं.
तुम मेरा पराजय जानती हो.
यह नफ़रत नहीं, एक सूरत है.
तुम्हारी नाराज़गी मेरी ज़रूरत है…

               ***

 

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