जाते हुए लोग ...

स्रोत:- यह अभिव्यक्ति सेवानिवृत हो रहे कर्मठ कर्मचारियों को समर्पित है जो किसी सेवानिवृत विदाई समारोह के दौरान उद्गृत हुआथा.
हमारे बीच से जाते हुए कुछ लोग
जिनके लिए हम महफ़िल सजाते है
ग़म की नीव पर खुशियां मनाते है
कुछ बातें सुनते है
कुछ सुनाते है
निश्चित रूप से
वो याद बहुत आते है…
यह एक भ्रम है
जीवन का वह मोड़,
हम से अभी दूर है
हर चीज़ स्थिर नही होती,
जीवन चल रहा है
उम्र घट रही है,
इस बात का सबूत है
वह मोड़,
दूर नहीं पहले से करीब है…
ये मूक दीवारें
बहुत करीब से देखीं है
मेरे जीवन की वास्तविक तस्वीरों को,
टेलीफोन की घंटिया,
मोबाइल पर आते संदेश,
अधिकारियों के फटकार,
कभी जीत कभी हार,
चेहरे की बदलती आकृति,
कुछ सच्चे कुछ झूठे,
संवादों की आवृत्ति,
और बहुत कुछ, छुपा रखी है
ये निर्जीव दिवारे..
ये दीवारें, जो अबतक निर्जीव थीं
आज सजीव हैं
बोल रहीं हैं
मुझे देख रहीं है
मुझे सुन रहीं है
फिर आने की ज़िद कर रहीं है
मैं उन्हें भी याद आ रहा हूँ
यही बात सुना रहीं है…
ये जाते हुये लोग
हमारे लिये विशेष है
इनके अनुभव
मेरी मंजिल की सीढ़ियां है,
इनकी यादे
हमारी प्रेणना है,
इनका भूत
हमारा भविष्य है,
इनका जाना
व्यवस्था की अनिवार्यता है,
इनका सम्मान
हमारी सभ्यता है
हम कुछ कहे न कहे
वे दिल मे समा जाते है,
यह सच है
जाते हुए लोग
याद बहुत आते हैं …