इस उम्मीद में कि...

स्रोत :- अक्सर व्यक्ति वर्तमान परिस्थितियों के गिरफ्त में इस प्रकार आ जाता है कि उसकी सभी इक्क्षाएं क्षीण होती नजर आती हैं . उम्र गुजरती जाती है और इक्षाएं पूरी नहीं होती है . अभिव्यक्ति एक सरकारी कर्मचारी की मनोदशा से निर्मित है .
आने वाला कल,
आज से बेहतर होगा
जिये जाता हूँ,
मायूसियों का बादल कभी तो छटेगा
धुप छाँव का खेल कभी तो रुकेगा
मुसीबतों का जंगल कभी तो कटेगा
यह सोच कर हर गम को
पिये जाता हूँ,
इस उम्मीद में कि
आने वाला कल आज से बेहतर होगा
जिये जाता हूँ ….
दिन का उज्जाला हो या रातों का अंधेरा
बर्फों की गलन हो या गर्मी का थपेड़ा
प्यासी धरती हो या सावन का बसेरा,
हर वक्त दिल के अरमानों को सिये जाता हूँ
इस उम्मीद में कि
आने वाला कल आज से बेहतर होगा
जिये जाता हूँ …
न जाने कब वो घड़ी आयेगी
इंतज़ार की सारी जख्मों को मिटा जायेगी
एक सुकून मिलेगा,
जिंदगी भी खूबसूरत होती है
वो सब कुछ मिलेगा
जिसकी जरुरत होती है,
इन्ही तमन्नाओं के डोर से
खुद को बांधे जाता हूँ
इस उम्मीद में कि
आने वाला कल आज से बेहतर होगा
जिए जाता हूँ…
आखिर कब तक झूलता,
इन ख़्वाबों के हवा महल पर,
यह सोचकर उतर आया एक दिन,
हकीक़त की धरातल पर
दिल में आया, जिंदगी का हिसाब कर लूं
अब तक क्या किया, आगे क्या करना है
एक बार याद कर लूं,
यह सोच कर मै पहुँच गया
अतीत के झरोखों में,
गुजरा हुआ वक्त
दिखता है कोरे कागज़ में
फिसली हुई उम्र
डूब चुकी है सागर में,
जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा
इंतज़ार खा गया,
पूरब का सूरज भी
अब पश्चिम में आ गया,
अब तक तो कुछ कर न पाया
आगे क्या कुछ कर पायेंगे,
ज़मीन तो खिसक चुकी है
क्या शिखर को छू पायेंगे,
नीव तो टूट चुकी है
क्या महल खड़ा कर पायेंगे,
इन्ही प्रश्नों में
उलझ कर रह जाता हूँ,
आने वाला कल,
आज से बेहतर होगा
यह सोच कर जिए जाता हूँ…
★★★