INSIDE ME

हर आदमी के अंदर,
एक और आदमी रहता है ...

यात्रा तो शुरू करो, रास्ते मिल ही जायेंगें -- आर.पी.यादव

तुम्हारा हर एक दिन, एक जीवन के समतुल्य है -- आर.पी.यादव

सूर्यास्त होने तक मत रुको, चीजें तुम्हे त्यागने लगे, उससे पहले तुम्ही उन्हें त्याग दो -- रामधारी सिंह दिनकर

हर परिस्थिति में एक खुबसूरत स्थिति छुपी होती है --आर पी यादव

एक दिन की जिंदगी

कभी-कभी पूरी ज़िंदगी एक ही दिन में गुजर जाती है. न जाने कितनी बातें, कितनी भावनाएँ, और कितनी उम्मीदें उस एक दिन में सिमट जाती हैं. यह कविता उसी लम्हे की बात करती है — जब समय थम जाता है, जब हर पल एक उम्र बन जाता है. यह कविता उन अनकहे अहसासों को छूती है, जो हम रोज़ जीते हैं लेकिन कभी व्यक्त नहीं कर पाते. यह एक ऐसा दिन है जो शायद सबसे ज़्यादा मायने रखता है. आइए, इस कविता के माध्यम से उस एक दिन की जिंदगी को महसूस करें — जिसने हमारी सोच को बदल दिया, और शायद हमें भी.

एक दिन की जिंदगी...

एक दिन की जिन्दगी
एक दिन की जिंदगी,
कुछ और नहीं
सौ वर्ष की बड़ी जिंदगी की
एक छोटी सी तस्वीर है.  
इस छोटी सी तस्वीर में
वो सब कुछ नजर आता है
जो सौ वर्ष की बड़ी जिंदगी में
हर मोड़ पर टकराता है…
 
सुबह बचपन,
दो पहर जवानी है
शाम बुढापा,
रात अंत की कहानी है,
विरोधाभास सुबह का कि
दिन ख़त्म नहीं होगा, 
नींद दो पहर का कि
यौवन लुप्त नहीं होगा,
पछतावा शाम का,
भाग्य से ज्यादा कुछ नहीं होगा
पूरी  जिंदगी की 
एक संचित स्वरूप है…
 
एक दिन कि जिंदगी,
कुछ और नहीं बल्कि
सौ साल के लम्बे रास्ते की
एक छोटी सी लकीर है…

            ●●●

                               

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top