बहुत इंतज़ार किया ...

तुम्हारा लौटना निश्चित था,
यह मालूम था मुझे,
तुम मिलते रहे अक्सर यहाँ
यादों के किताबों में,
घर के इस कोने में
कभी उस कोनें में,
तुम्हारी खिलखिलाहट और संगीत
छुपा रखा है दीवारों के दरारों में
मैं रोज़ सुना करता था इसे
अँधेरे और उजालों में.
खिड़कियों से आती हवा का झोंका,
तुम्हारा स्पर्श था
दरवाज़ों की शरारत,
तुम्हारी आहट थी,
बर्तन की खनकती आवाजें
तुम्हारी पायल थी
सावन की बुँदे,
तुम्हारी घुघरू थीं.
तुम्हारे इन संदेशों पर
हर दफ़ा एतबार किया
कहाँ थे अबतक,
बहुत इंतजार किया …
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