INSIDE ME

हर आदमी के अंदर,
एक और आदमी रहता है ...

यात्रा तो शुरू करो, रास्ते मिल ही जायेंगें -- आर.पी.यादव

तुम्हारा हर एक दिन, एक जीवन के समतुल्य है -- आर.पी.यादव

सूर्यास्त होने तक मत रुको, चीजें तुम्हे त्यागने लगे, उससे पहले तुम्ही उन्हें त्याग दो -- रामधारी सिंह दिनकर

हर परिस्थिति में एक खुबसूरत स्थिति छुपी होती है --आर पी यादव

धोखा देता है ये वक्त !

“धोखा देता है ये वक़्त” एक भावनात्मक हिंदी कविता है जो समय के छल और विश्वासघात की पीड़ा को गहराई से दर्शाती है। अगर आप वक्त और जीवन की सच्चाइयों को महसूस करना चाहते हैं, तो यह कविता जरूर पढ़ें।

धोखा देता है ये वक्त...

(स्रोत:-यह अभिव्यक्ति, जनवरी  22, 2005  के साँय उस वक्त मेरे कलम से निकली जब मैंने टी. वी. पर यह समाचार देखा कि एक समय की मशहूर फिल्म अदाकारा परवीन बाबी के रहस्यमय निधन हो गया है और  उनकी डेड बाडी लेने वाला कोई नहीं है. )   

धोखा देता है ये वक़्त
कभी बहुरूपिया बनकर,
कभी अपना बनकर,
कभी पराया बनकर,
कभी वर्तमान बनकर,
तो कभी भूत बनकर…

बेचारा आदमी
भटक ही जाता है
वक़्त की चालों में,
हालात के जालों में,
कभी रंगीन ख़यालों में,
कभी मदहोशी के प्यालों में…

यह अदृश्य वक़्त
हर जीवन को
अपने घूमते परिधि पर बैठाकर,
उन बिंदुओं को छूता है
जहाँ जीवन का हर अंग है,
वक़्त का हर रंग है
ख़ुशी का सागर और दुखों का पहाड़,
ग़रीबी की खाई और दौलत की बरसात,
अंधेरी रात, कहीं रौशनी की बाड़,
अनोखा बचपन और यौवन का ख़ुमार,
बुढ़ापे की तड़प और अकेलेपन की मार…

और अंत में,
यह बेरहम वक़्त
मौत के जाल में जीवन को छोड़कर,
पानी की तरह बह जाता है,
एक और नए जीवन को
अपने परिधि पर बैठाने के लिए।
बहुरूपिया बन जाता है पुन:
हमें हँसाने और रुलाने के लिए…

        ★★★

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