INSIDE ME

हर आदमी के अंदर,
एक और आदमी रहता है ...

यात्रा तो शुरू करो, रास्ते मिल ही जायेंगें -- आर.पी.यादव

तुम्हारा हर एक दिन, एक जीवन के समतुल्य है -- आर.पी.यादव

सूर्यास्त होने तक मत रुको, चीजें तुम्हे त्यागने लगे, उससे पहले तुम्ही उन्हें त्याग दो -- रामधारी सिंह दिनकर

हर परिस्थिति में एक खुबसूरत स्थिति छुपी होती है --आर पी यादव

क्या यही जिन्दगी है ?

आजकल के कुछ सुविधा संपन्न बच्चों के जीवन शैली पर आधारित और चिंतनीय प्रश्नों को उठाती कवितामय प्रस्तुति.

क्या यही जिन्दगी है ?

क्या यही जिन्दगी है
 

सुबह यूँ जगना जैसे
जगना ज़रूरी न हो,
वक़्त के साथ यूँ चलना
जैसे वक़्त की कमी न हो.
क्या यही ज़िंदगी है ?

दिन को रात समझना
जैसे सोना ही अपनी मंज़िल हो,
रातों को दिन में बदलना
जैसे जगना ही मज़बूरी हो.
क्या यही ज़िंदगी है ?

नमकहलाली से दूर
नमकहरामी को अपनाना,
हकीकत छोड़
ख़्वाबों में खो जाना.
क्या यही ज़िंदगी है ?

अपनी तारीफ़ों के गीत
ख़ुद ही गुनगुनाना,
औरों के जीवन में
काँटे बिछाना.
क्या यही ज़िंदगी है ?

सच से मुँह मोड़कर
झूठ की चादर ओढ़ लेना,
अंधी भीड़ के पीछे
बेमतलब दौड़ लेना.
क्या यही ज़िंदगी है ?

अपने ही अंतर्मन की
आवाज़ को अनसुना कर देना, 
दूसरों की चाहतों में
ख़ुद को गुम कर देना.
क्या यही ज़िंदगी है ?

           ★★★

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