जिन्दगी छोटी है ...

इसके बीच में छुपी जवानी,
और भी छोटी है.
कभी संभल जाती है,
कभी फिसल जाती है.
मुट्ठी की रेत है यह,
आहिस्ते से निकल जाती है.
फिर वापस नहीं आती.
कोशिशें हजार होती हैं,
अरमान बहुत हैं, किंतु
जिन्दगी छोटी है…
हर पल खाली जा रहा है,
इस भ्रम में कि पूरा दिन अपना है.
हर दिन व्यर्थ हो रहा है,
इस घमंड में कि पूरा माह अपना है.
हर माह सो रहा है,
इस नशे में कि साल अपना है.
हर साल सुनसान है,
इस भ्रम में कि जिन्दगी बड़ी है.
निकल रहा है वक्त किस्तों में.
अभी सफर अधूरा है,
सपने बड़े हैं, किंतु
जिन्दगी छोटी है…
बचपन,
खेल-खेल में निकल जाता है.
जवानी,
मदहोशी में फिसल जाती है.
बुढ़ापा,
बोझ बन जाता है.
यह छोटी सी जिन्दगी
तीन खंडों में बंट जाती है.
तमन्नाओं की तादाद बड़ी है,
पर जिन्दगी बहुत छोटी है…
क्यों बहकते हो
भ्रम की हवाओं में?
क्यों जाते हो
अंधेरी गुफाओं में?
क्यों भटकते हो
कोरी कल्पनाओं में?
जिन्दगी अनंत नहीं,
चंद साँसों की एक लड़ी है.
रास्ते लंबे, किन्तु
जिन्दगी छोटी है…
★★★