वो कल कब आयेगा ? ...

वो कल,
जो आज को खा रहा है
सदियों से तड़पा रहा है
उम्र को घटा रहा है,
जिन्दगी को दौड़ा रहा है
कब आयेगा ?
वो कल जो,
छुपा है अंधेरों में
अनिश्चिता के घेरों
अनिश्चिता के घेरों
समय के फेरों में
शाम और सबेरों में
कब आयेगा ?
वो कल जिसे,
सजाने की चाह में
आज, विकृत हुआ जा रहा है
वो ऊचाई जिसे
छूने की चाह में
जमीं धसती जा रही है
ऐसे धरातल पर
महल कैसे बन पायेगा ?
वो सपनों का कल
जो आज को रौंद रहा है
जाने कब आयेगा ?
★★★