INSIDE ME

हर आदमी के अंदर,
एक और आदमी रहता है ...

तुम वक़्त हो एक दिन का

हम दोनों में एक फर्क है,
मैं जीवन हूँ प्रतिदिन का,
तुम वक़्त हो एक दिन का ... 

( एक दिन के महत्त्व को परिभाषित करती एक भावपूर्ण रचना )

तुम वक़्त हो एक दिन का

तुम वक़्त हो एक दिन का

कल,
कोई और आएगा 
हु बहु तेरे आकृति में,
लोग समझेंगे, 
तुम लौट आये हो दूसरे दिन
रात्रि विश्राम के बाद,
लेकिन मैं जानता हूं तेरी सच्चाई
मेरे सोने के साथ तुम भी सो जावोगे 
फर्क इतना है कि,
मैं फिर लौटूंगा कल
जिंदगी के मेले और
हालातों के परिवेश में
किन्तु वो तुम नही,
कोई और लौटेगा तुम्हारे भेष में,
हम दोनों में एक फर्क है,
मैं जीवन हूँ  प्रतिदिन का,
तुम वक़्त हो एक दिन का… 

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