रिश्तों की बंदिश ...

दो व्यक्तियों के बीच.
एक रिश्ता बन जाता है
कब, क्यों और कैसे,
इसका उत्तर
अवर्णित, अपूर्ण और अनंत होता है,
यह एक सृष्टिगत व्यवस्था है
एक प्राकृतिक घटना है
जाति, उम्र, लिंग, भाषा, क्षेत्र, और धर्म
बेअसर हो जातें है,
सीमाएं टूट जाती हैं
मर्यादाएं खो जातीं है
जब यह निर्मित होता है…
समाज एक नियम बनाता है
अब वह विशुद्ध रिश्ता
उस नियम से बाधित हो जाता है,
एक प्राकृतिक बंधन,
अप्राकृतिक नियमों के अधीन हो जाता है
उम्र का सुनहरा हिस्सा
उन नियमों के खाँचे में फंस जाता है
झूठी, अतार्किक पेंचों और
परंपराओं के बीच
रिश्ता फड़फड़ाता रहता है
उड़ने के लिए,
दो जीवन भागता रहता है
उभरने क लिए….
तमाम संघर्ष और समझौतों के बाद
जब समाजिक स्वीकृति मिलती है
तब तक उम्र,
बहुत आगे जा चुका होता है
बंदिशें खत्म हो जाती है किंतु
बन्धनों के निशांन नही मिटती
मंजूरी मिल जाती है किंतु
मंजिल नही मिलती …
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