नयापन...

(स्रोत:- नववर्ष पर शोर मचाने की नहीं उसे सार्थक बनाने की जरुरत है.)
जिंदगी का वो मकसद,
जो भाग्य की पटरी पर
वर्षों से खड़ा है,
वो सपने जो बहुत खूबसूरत हैं
पर वास्तविकता से दूर खड़े हैं,
वो इरादे जो बचपन से
मन की दीवारों में जड़े हैं,
वो ख्याल जो हर क्षण
मन-मस्तिष्क में पड़े हैं,
वो महल जो महज
कल्पनाओं पर खड़े हैं,
इन सबका साकार होना भी तो नयापन है…
वो आदतें जो
हमें कलंकित करती हैं,
वो रिश्ते जो
हमें शर्मिंदा करते हैं,
वो कर्म जो
हमें अवनति की ओर प्रशस्त करते हैं,
इनका परित्याग भी तो नयापन है…
पीछे क्या छूट गया,
आगे क्या शेष है,
उपलब्धियों की खुशी,
और न पाने का खेद है,
मन भटकता है वहाँ,
जहाँ यादों का अवशेष है,
कितना खोया अब तक,
अब क्या शेष है,
जिंदगी का हिसाब
करना भी तो नयापन है…
आज का नया साल
फिर से पुराना होगा,
आज जो आया है
कल इसे भी जाना होगा,
अब तक जो न कर पाया
उसे इसी में पाना होगा,
वक्त के इस नए बाग़ में
फूलों को लगाना होगा,
नववर्ष के इशारों को
समझना भी तो नयापन है…
★★★