INSIDE ME

हर आदमी के अंदर,
एक और आदमी रहता है ...

मृगतृष्णा

क्यों उम्मीद रखते हो उसके आने की, जो तुम्हारे हिस्से में नहीं आती,
निगाहें क्यों मिलाते हो उन सितारों से जिनकी रोशनी तुम्हारे दरवाज़े तक नहीं आती...
मृगतृष्णा — एक कविता जो उन अधूरी इच्छाओं और भ्रमों की बात करती है, जो जीवन में हमें कभी संतुष्ट नहीं होने देतीं, बस दौड़ाते रहती हैं.

मृगतृष्णा ...

 
क्यों उम्मीद रखते हो
उसके आने की जो,
तुम्हारे हिस्से में नहीं आती,
निगाहें क्यों मिलाते हो
उन सितारों से जिनकी रोशनी
तुम्हारे दरवाज़े तक नहीं आती,

क्या मिलता है तुम्हें
इस हरकत से,
जो जख्मों को नहीं भरती,
कशक पैदा करती है अधूरेपन की
पर कमियों को पूरा नहीं करती …

उम्र के वे बेहतरीन हिस्से,
खो गए किसी के इंतज़ार में,
जो बदल सकते थे अपनी तकदीर को
वो भी निकल गए
किसी के ख्याल में….

कोशिश क्यों करते हो
किसी और के हिस्से को
अपने में मिलाने को,
क्यों परेशान होते हो
दूर की खूबसूरती को
पास में लाने को
दूर की चीजें
ख़ूबसूरत ही तो लगती है
फिर क्यों तरसते हो
उस मृगतृष्णा को पाने को..

           ★★★

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