क्या करोगे नववर्ष पाकर ?

(स्रोत:- कुछ लोग नये बर्ष पर पागल हो जाते है. उन्हें भ्रम होता है एक नया वर्ष पाने का और मुझे आभास होता है एक बर्ष खोने का. हर बार नए वर्ष, एक प्रश्न पूछता है :- क्या करोगे नवबर्ष को पाकर ? )
क्या करोगे
नववर्ष को पाकर,
क्या कर पाए हो
इतने वर्षों तक?
है कोई उपलब्धि,
जो भविष्य को सजा सके,
अतीत को लुभा सके,
सपनों को साकार करे,
घर को बसा सके,
और मानवता को बचा सके ?
क्यों खुश होते हो
समय को गंवाने से,
अंत के करीब जाने से,
वक्त के गुजर जाने से,
जीवन के एक और टुकड़े को
दरिया में बह जाने से,
उम्र के एक और पन्ने को
कोरा छोड़ जाने से ?
तुम खुश नहीं, दिग्भ्रमित हो,
समय ने भरमाया है.
तुम योद्धा नहीं, डरपोक हो
समय ने तुम्हें हराया है.
तुम रक्षक नहीं, एक चोर हो
समय को चुराया है.
तुम विजयी नहीं, पराजित हो
समय ने तुम्हें हराया है…
यह कोई उत्सव नहीं,
कुछ खोने की निशानी है.
यह नववर्ष नहीं,
बल्कि जिंदगी की कहानी है.
यह कोई तोहफा नहीं,
उम्र की रवानी है…