INSIDE ME

हर आदमी के अंदर,
एक और आदमी रहता है ...

यात्रा तो शुरू करो, रास्ते मिल ही जायेंगें -- आर.पी.यादव

तुम्हारा हर एक दिन, एक जीवन के समतुल्य है -- आर.पी.यादव

सूर्यास्त होने तक मत रुको, चीजें तुम्हे त्यागने लगे, उससे पहले तुम्ही उन्हें त्याग दो -- रामधारी सिंह दिनकर

हर परिस्थिति में एक खुबसूरत स्थिति छुपी होती है --आर पी यादव

बचपन का शहर

आज रात,
बर्षों बाद देखा था उस चाँद को,
जिससे रिश्ता है बचपन की यादों का,
अनोखा अनुभव है साथ गुजरे रातों का..
(बचपन की यादों पर आधारित एक बेहद भावपूर्ण कविता)

बचपन का शहर ...

आज रातबर्षों बाद चाँद को देखा थाउस चाँद को,जिससे रिश्ता हैबचपन की यादों काअनोखा अनुभव हैसाथ गुजरे रातों का... रिश्ता है मेरा इनके साथअनूठे संबंधों का,रोमांच,...
 
आज रात
बर्षों बाद चाँद को देखा था
उस चाँद को,
जिससे रिश्ता है
बचपन की यादों का
अनोखा अनुभव है
साथ गुजरे रातों का …
 
रिश्ता है मेरा इनके साथ
अनूठे संबंधों का,
रोमांच, प्रकृति के नजारों का,
साथ अनंत सितारों का,
एहसास, सपनों के शहर का…
 
एक बड़ा सा घर आसमान का,
चारों ओर चलते अनगिनत सितारे,
छोटे, बड़े, मझोले अनगिनत तारे
मन मस्तिष्क को
शांत करती
वे निश्छल सौम्य धाराएं
कभी दूर से बुलातीं
कभी पास आ जाएं…
 
ऐसा संसार जिसका
कोई परिधि नहीं,
ऐसा घर जहां कोई
दरवाज़ा नहीं,
ऐसा महल जहां कोई
पहरा नहीं,
ऐसा समाज जहां कोई
बंधन नहीं …
 
यहाँ की जिंदगी
कितनी खूबसूरत है,
यहाँ की रोशनी
कितनी शीतल है,
इस दुनिया का संपर्क
हमारे मन से है,
इनसे निकलती रोशनी का संबंध
हमारे तन से है…
 
रात के दूसरे पहर में
आज देखा था
उस खुले आसमान को,
जो बचपन का शहर था,
हमारे सपनों का महल था
ये चाँद और तारे
हमारे दोस्त थे
हम उनके ख़ास थे
वे हमारे पास थे …
 
महसूस होता है
हमारी मौलिकता
यही कही रुकी  है,
हमारी मुक्ति भी
यही कही छुपी  है
वास्तविक जिंदगी का क्रम,
यही कही टूटी है..
 
हम छोड़कर इस शहर को
कहाँ चले गए ?
छोड़ कर इस घर को
कहाँ खो गए ?
मुड़ कर डगर से
कहाँ भटक गए ?
तोड़कर उस बंधन को
कहाँ सो गए ?

    ★★★

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