कालचक्र ...

कालचक्र,
एक पहिया है
जो निरंतर घूमता है
धरती और आकश को चूमता है,
इसके परिधी में विद्यमान
हम सभी घूम रहे है
निर्धारित फेरों की संख्या गिन रहे है
किंतु,
यह साथी नहीं, एक साक्षी है …
कालचक्र,
एक दर्पण है
जो प्रतिविम्ब को दर्शाता है
हकीक़त को दिखाता है
भ्रम को भगाता है
किंतु,
यह चटकता नहीं, सदैव चमकता है…
कालचक्र,
एक नदी की धारा है
जो दूरी को नापता है
कभी रूकता नही, सदैव भागता है
किंतु,
यह अंतहीन नहीं,
इसका भी किनारा है …
कालचक्र,
एक जीवन रेखा है
इसका कोई शक्ल नही,
न किसी ने देखा है
दुःख सुख को समेटे
करवटों का घेरा है,
किन्तु,
यह निरर्थक नही
सृष्टि का समर्थक है…
★★★