कभी-कभी...

कभी-कभी
कुछ गुनाह करने को दिल करता है,
जब मन और तन
एक तरफ हो जाते हैं,
आग और पानी,
आस-पास आ जाते हैं,
कुछ उसूलों का क़त्ल
करने को दिल करता है.
कभी-कभी
कुछ गुनाह करने को दिल करता है…
कभी-कभी
शरारत करने को दिल करता है,
जब हालात और जज़्बात
एक ही बात करते हों,
जब दूसरे की साँसों से
अपना दिल धड़कता हो,
ऐसे में कुछ बंधनों को
तोड़ने को दिल करता है.
कभी-कभी
कुछ गुनाह करने को दिल करता है…
कभी-कभी
बहकने को दिल करता है,
जब स्याह रात और मदहोश यौवन
आस-पास आ जाएँ,
तन्हाइयों की तड़प से
जब सावन बरस जाए,
अरमानों की बारात
जब मंज़िल से मिल जाए,
ऐसे में कुछ लोगों से
उलझ जाने को मन करता है.
कभी-कभी
कुछ कर जाने को मन करता है…
★★★