कविता क्या होती है ...

मुझे मालूम नहीं
कविता क्या होती है ?
जब जिन्दगी,
किसी सीधी सड़क से उतर कर
पगडंडी की ओर मुड़ जाती है,
लक्ष्य पाने की तमन्ना
जब टुकड़ों में बट जाती है,
हर सोच व ख्यालात का मतलब,
जब विपरीत हो जाता है,
वजह इन बदलाओं का
जब कलम के रास्ते
कागज़ पर उतर आता है,
कविता कुछ और नहीं,
शायद इसी का नाम होता है …
ईट और पत्थरों की बोझ उठाती
अधनंगी महिलाएं,
हाथों में टीन के खाली कटोरी से
खेलते उनके नंगे बच्चे,
जो सिर्फ
वर्तमान को जीते है,
उनके निश्छल हंसी की कीमत,
वह नहीं होती
जो ऊँचे लोगों की हंसी में होती है,
इन दो वर्गों के ख़ुशियों में
अंतर का अहसास,
कविता कुछ और नहीं,
शायद इसी का नाम होता है…
जब कोई शख्स,
भीड़ में अकेला और अकेले में भीड़
महसूस करता है,
जब गम में वह हँसता है और
ख़ुशियों में रोता है,
अंधेरे में जागता है और
उजाले में सोता है,
उस शख्स के जज़बातों को
शब्दों में समेटना,
कविता कुछ और नहीं,
शायद इसी का नाम होता है …
एक व्यक्ति,
वातानुकूलित महल में
घुटन महसूस करता है,
दूसरा,
खुले आसमान के नीचे
सहज महसूस करता है,
एक दौलत की ढेर पर बैठ कर
गरीब नजर आता है,
दूसरा दौलत से दूर होकर भी
अमीर नजर आता है.
दृष्टिकोण के इन बिंदुओं के बीच,
एक तस्वीर का उभरना,
कविता कुछ और नहीं
शायद इसी का नाम होता है …
★★★