निर्देशक
कंगना रनौत
निर्माता
कंगना रनौत, रेनू पिट्टी
लेखक
कंगना रनौत, रितेश शाह
सिनेमैटोग्राफी
टेटसुओ नगाता
संगीत
जी. वी. प्रकाश कुमार ,अर्को

कंगना रनौत
इंदिरा गाँधी

अनुपम खेर
जय प्रकाश नारायण

महिमा चौधरी
पुपुल जयकर

विशाक नायर
संजय गांधी

सतीश कौशिक
जगजीवन राम

श्रेयस तलपड़े
अटल बिहारी वाजपेयी
कहानी का सारांश
फिल्म की शुरुआत 12 वर्षीय इंदु (इंदिरा गांधी) से होती है। जहां वह अपने दादा से सत्ता और शासन के पहले सबक सीखती हैं। कहानी आगे बढ़ते हुए इंदिरा गांधी के व्यक्तिगत और राजनीतिक जीवन के महत्वपूर्ण पड़ावों को दर्शाती है। जैसे कि भारत-चीन युद्ध। शिमला समझौता। 1971 का भारत-पाक युद्ध। बांग्लादेश का स्वतंत्रता संग्राम। 1975 से 1977 तक का आपातकाल। नसबंदी अभियान। ऑपरेशन ब्लू स्टार और अंततः उनकी हत्या। इन घटनाओं के माध्यम से फिल्म इंदिरा गांधी के जीवन के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती है।
✓ फिल्म क्यों देखें ?
- कंगना रनौत का सशक्त अभिनय: इंदिरा गांधी के रूप में कंगना ने अपने अभिनय कौशल का उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। जिससे दर्शक उनके किरदार से जुड़ाव महसूस करते हैं।
- सहायक कलाकारों का प्रभावशाली प्रदर्शन: महिमा चौधरी और सतीश कौशिक जैसे अनुभवी कलाकारों ने अपने-अपने किरदारों को जीवंत किया है। जो कहानी को मजबूती प्रदान करते हैं।
- सिनेमैटोग्राफी और सेट डिजाइन: टेटसुओ नगाता की सिनेमैटोग्राफी और उस दौर के अनुसार सेट डिजाइन दर्शकों को 1970 के दशक के भारत की वास्तविकता का अनुभव कराते हैं।
- राजनीति और इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए खास: यदि आप भारतीय राजनीतिक इतिहास में रुचि रखते हैं। और कंगना रनौत के प्रशंसक हैं। तो यह फिल्म आपके लिए देखने योग्य है।
✓ फिल्म क्यों नहीं देखें ?
- कहानी का विस्तार: फिल्म में इमरजेंसी के अलावा इंदिरा गांधी के जीवन के अन्य पहलुओं को भी शामिल किया गया है। जिससे कहानी कहीं-कहीं विस्तृत और धीमी महसूस होती है।
- भावनात्मक गहराई की कमी: कुछ दृश्यों में भावनात्मक गहराई की कमी महसूस होती है। जिससे दर्शकों का जुड़ाव कम हो सकता है।
- अगर आप राजनीति या ऐतिहासिक घटनाओं में रुचि नहीं रखते: यह फिल्म राजनीतिक पृष्ठभूमि पर आधारित है। यदि आपको इस तरह की फिल्में उबाऊ लगती हैं। तो शायद यह आपकी पसंद न हो।
कमजोर पक्ष
- अनुपम खेर की अपेक्षित भूमिका की कमी: अनुपम खेर एक ऐसे अभिनेता हैं जो किसी भी भूमिका को गहराई तक निभाने के लिए जाने जाते हैं। फिल्म में जयप्रकाश नारायण की भूमिका को और अधिक प्रभावशाली बनाया जा सकता था। लेकिन फिल्म में उनकी भूमिका को सीमित कर दिया गया। जिससे उनका किरदार उतना प्रभाव नहीं छोड़ पाया।
- श्रेयस तलपड़े का कमजोर प्रदर्शन: श्रेयस तलपड़े को अटल बिहारी वाजपेयी के किरदार में देखकर उत्साह तो बढ़ता है। लेकिन वह वाजपेयी जी की वास्तविक छवि को पूरी तरह से दर्शाने में असफल रहे। उनकी संवाद अदायगी और बॉडी लैंग्वेज वाजपेयी जी की तरह स्वाभाविक नहीं लगती।
- संजय गांधी के किरदार का अधिक आक्रामक चित्रण: फिल्म में संजय गांधी के किरदार को जरूरत से ज्यादा आक्रामक और उग्र दिखाया गया है। जो ऐतिहासिक तथ्यों से थोड़ा अलग महसूस होता है।
रेटिंग: (3/5)